पंचांग-पुराण
अखिर हम क्यों मनाते हैं होली, क्या है इसके पीछे का महत्तव ? कैसे करें होलिका दहन ?
भारत में मनाए जाने प्रमुख पर्वों में से एक है रंगों का त्योहार होली । होली वसंत ऋतु में विक्रम संवंत यानी हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है । रंगों का यह त्योहार लगातार दो दिनों तक मनाया जाता है । जिसमें पहले दिन को छोटी होली या होलिका दहनकहा जाता है । और दूसरे दिन को रंगवाली होली, धुलेडी, धुलंदी, धुरखेल या धूलिवंदन जैसे नामों से जाना जाता है । होली के पहले दिन को लोग बुराई पर अच्छी की जीत के रुप में मनाते हुए होलिका दहन करते हैं । दूसरे दिन लोग एक – दूसरे पर रंग, अबीर- गुलाल इत्यादि लगाते हैं । मना जाता है कि होली के दिन तो लोग अपनी पुरानी दुश्मनी भुला कर गले मिलते हैं और फिर से एक- दूसरे की तरफ दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाते हैं और दोस्त बन जाते हैं ।
इस पर्व में रंगों का काफी महत्व माना जाता है, मान्यता है कि रंग प्रेम औऱ एकता का प्रतीक होते हैं । और प्यार भरे रंगों का यह त्योहार हर संप्रदाय, जाति – धर्म के बंधन को हटाकर भाई- चारे का सदेंश देता है । होली के दिन लोग अपने आपस के सारे गिले – शिकवे भूला कर गले मिलते हैं और एक – दूसरे को रंग लगाते हैं । इन सबसे हमारे जीवन में भाई – चारा और सब के लिए प्यार बढ़ता है । मस्ती और रंगों के खेल के साथ होली का पौराणिक महत्व भी माना जाता है, जिसमें अच्छाई की बुराई पर जात हुई थी ।
कई लोग हिंदु पंचांग के आधार पर होली को नव वर्ष आगमन के स्वागत के रुप में भी मनाते हैं । इसी के साथ इस दिन से सर्दी के मौसम को विदाई दी जाती है और नए मौसम का किया जाता है ।
होली के पर्व से अनेकों कहानियाँ जुड़ी हुई हैं । सभी कहानियों में से एक सबसे लोकप्रिय पौराणिक कथा है प्रह्लाद की । माना जाता है कि प्राचीन काल में हरिण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर राजा था । अपने बल के दर्प और भगवान बह्मा जी से मिले वरदान के कारण वह अपने आपको ही ईश्वर मनाने लगा था । अपने अहंकार के कारण उसने अपने पूरे राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी । लेकिन उसका अपना ही पुत्र प्रह्लाद भगवान श्री हरी विष्णु का परम भक्त था । प्रह्लाद की विष्णु के प्रति भक्ति दिकर बहुत क्रुध्द हुआ । हरिण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को ईश्वर भक्ति न करने के लिए बहुत समझाया, लेकिन जब वह माना और अपनी प्रभु भक्ति करता रहा । हरिण्यकश्यप ने क्रुद्ध होकर उसे अनेक प्रकार के कठोर दंड दिए, कभी उसे पहाड़ी के ऊपर से फिकवाया, तो कभी हाथी के पैरों के नीचे धकेला, परंतु प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति करना नहीम छोड़ा ।
अंत विवश होकर उसने प्रह्लाद को जलाने का निर्णय लिया । हरिण्यकश्यप की एक बहन थी होलिका, उसको वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीम हो सकती । हरिण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाए । होलिका ने अपने भाई के अदेश को मनाते हुए प्रह्लाद को गोद में लेकर आग के बीच जाकर बैठ गई । आग में बैठने पर होलिका का वरदान भी उसका साथ न दे सका और वो आग में जल कर नर गई, पर प्रह्लाद बच गया ।
यहां ये कथा इस बात का संकेत करती है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत निश्चित होती है । आज भी होलिका और ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में हर साल इस दिन होली / होलिका जलाई जाती है । और अगले दिन सभी लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और कई अलग- अलग तरह के रंग डालते हैं ।
भक्त प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त, होली का यह त्योहार राक्षसी ढुंढी, कृष्ण और राधा की रास, कामदेव के पुर्नजन्म से भी जुड़ा हुआ है । कई लोगों का मानना है कि होली पर रंग लगाकर, नाच- गाकर औक ठंडाई पीकर लोग भगवान शिव के गणों का वेश धारण करते हैं और शिव जी बरात का दृश्य बनाते हैं ।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन ही पूतना नाम की राक्षसी का वध किया था । इस की खुशी में गोंपियों और ग्वालों ने रासलीला की थी और रंग खेला था ।
इस त्योहार को कब से मनाया जा रहा है या पहली बार कब मनाया गया था, इसका कोई प्रमाण नहीं हैं । लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था । लेकिन उस समय अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था । इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है । इनमें सबसे ज्यादा मुख्य हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा- सूत्र और कथा गार्ह्य – सूत्र । नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्रचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी होली पर्व का महत्व का उल्लेख मिलता है । ईसा के 300 साल पुराने एक अभिलेख में भी होली के बारे मे बताया गया है , जो विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित है ।
इस वर्ष होली 20 फरवरी 2019 और 21 फरवरी को मनाई जाएगी । जिसमें 2 फरवरी को होलिका दहन किया जाएगा और 21 फरवरी को रंग खेला जाएगा ।
होलिका दहन कैसा किया जाता है, और क्या है जरुरी पूजा सामग्री
होलिका दहन के लिए जरुरी पूजा सामग्री –
⦁ मिट्टी का दीया
⦁ रुई
⦁ देसी घी
⦁ धूप – अगरबत्ती
⦁ रौली
⦁ सूखा नारियल ( गोला)
⦁ मिठाई
⦁ अक्षत (कच्चे चावल के दाने )
⦁ पानी
⦁ मुंग दाल
⦁ फूल
⦁ चंदन
⦁ हल्दी
⦁ 2 सुत की कूकड़ी
⦁ 5 गाय के गोबर से बनी मालाएं
⦁ हरा चना
⦁ जौ या अनाज
⦁ गन्ना
होली पूजा की विधि-
देसी घी के दीए को जलाए, इसके बाद भगवान गणेश का पूजन करें । पूजन करते समय अपने हाथ में अक्षत औऱ पानी को लेकर श्री गणेश की अराधना करें । पूजा करते समय आरती से पहले भगवान को मिठाई का भोग लगाए और पानी अर्पित करें । पूजा के बाद अगर आप चाहे तो ऊँ प्रह्लादाय नम: मंत्र का जाप कर सकते हैं ।
गणेश पूजन के बाद होलिका पूजन के लिए सभी पूजी साम्रगी उसमें चढ़ाएं । इसके बाद होलिका के रुप में रखी लकड़ियों को अग्नि देकर जलाए । होलिका के आस – पास सूत के धागे को लपेटते हुए पांच से सात बार तक परिक्रमा लगाएं । जलती हुई होलिका की आग में गेंहू, हरे चने के बालि को डालकर भूनें और बाद में यहीं प्रसाद के तौर पर सब को दे ।
आप होलिका दहन के बाद बची हुई राख को उठाकर भी रख सकते, जिसे आप विभुति के रुप में प्रयोग कर सकते हैं ।
भारत और नेपाल में मनाया जाने वाला महत्वपूण त्योहार होली हर उन जगहों पर मनाया जाता है जहां भारतीय आबादी हो । अब तो विदेशों में भी होली का त्योहार बहुत धुम धाम से मनाया जाता है । भारत में यह अलग – अलग राज्यों में अलग – अलग रुपों में मनाई जाती है ।
भारत के हर क्षेत्र के लोग अपनी संस्क्रति के अनुसार होली का उत्सव मनाते । इन सभी में कई समानताएं और भिविन्नताएं दिखने को मिलती हैं । हम अनेकों नाम, प्रथाओं और प्रचलनों के आधार से होली मनाते हैं, लेकिन हम जिस भी तरह या जिस भी नाम से अलग – अलग जगहों पर होली का पर्व मनाते, सब का एक ही प्रतिक है और वो है एकता ऐर भाई – चारा । भाई – चारे का प्रतिक यह त्योहार साबित करता है कि हम देश के किसी भी हिस्से के क्यों न हो, लेकिन हम सब एक हैं ।