अनमोल ज्ञान
जानिए तीन सफल व्यक्तियों की सफलता की कहानी

सच है कि जो संघर्ष को सफलता का रास्ता मानते हैं,मंज़िल तक पहुंचना केवल वही जानते हैं। इस पोस्ट में हम आपके सामने ऐसे तीन महान सफल व्यक्तियों की सफलता की प्रेरणादायक कहानियां लेकर आए हैं ,जिनको सफलता विरासत में या भाग्य से नहीं मिली बल्कि इन्होंने अपनी मेहनत,दूरदर्शिता तथा सकारात्मक दृष्टिकोण के दम पर असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया। आज ये तीनों नाम पूरे विश्व में किसी परिचय के मोहताज नहीं है ,लेकिन कैसे ये तीनों हर कदम पर मिली असफलता से सबक सीखते हुए आगे बढ़े कि आज पूरी दुनिया इनका अनुसरण करना चाहती है। इनकी कहानी शुरू करने से पहले आपको बता दें कि इनके पास ना तो कोई पुश्तैनी दौलत थी ना ही बड़ी -बड़ी डिग्रियां । अगर था तो केवल कुछ कर दिखाने का हौसला और कामयाबी पाने के जुनून। जिसका परिणाम यह हुआ कि कामयाबी को इनके कदमों को चूमने आना ही पड़ा। सबसे पहले हम आपको परिचित करवाने जा रहे हैं चीन की ई-कॉमर्स कम्पनी अलीबाबा के संस्थापक जैक मा के जीवन से।
1.जैक मा की सफलता का राज-
आज जैक मा चीन के सबसे अमीर व्यक्ति माने जाते हैं लेकिन यहां तक पहुंचने का सफर कैसा रहा उन्हें किन- किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा और कैसे वे इस मुकाम तक पहुंचे, उनकी सफलता से जुड़ी हर बात हम आपको बताने जा रहे हैं। जैक मा का जन्म 10 सितम्बर 1964 को चीन के एक छोटे से गांव में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ। उनके माता-पिता ने उनका नाम ‘मा-युन’ रखा था । तीन भाई -बहनों में जैक दूसरे नम्बर पर थे । परिवार का पालन – पोषण पिता द्वारा गा-बजा कर की गई कमाई से ही होता था ।उनकी पढ़ाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी। चीन में अग्रेज़ी भाषा को इतना महत्त्व नहीं दिया जाता लेकिन जैक को बचपन से ही इंगलिस से खास स्नेह रहा है । वह घर के पास ही होटल में आने वाले पर्यटकों को घुमाकर उनसे अंग्रेज़ी सीखा करते थे ।
अंग्रेज़ी के प्रति इसी प्रेम ने उन्हें गाइड की नौकरी करने के लिए उत्साहित किया। इस तरह उन्होंने मात्र 13 वर्ष की आयु में इंग्लिश के साथ-साथ पश्चिमी सभ्यता,वहां के तौर-तरीके तथा तकनीक सीखी। इन्हीं विदेशी पर्यटकों में से उनके मित्र बने एक पर्यटक ने उनका नाम जैक-मा रख दिया। जैक-मा पढ़ाई में बहुत अच्छे नहीं थे । आपको जानकर हैरानी होगी कि अलीबाबा का फाउंडर अपने जीवन में दो बार पांचवीं कक्षा में तथा तीन बार आठवीं कक्षा में फेल हुआ है,यही नहीं विश्व विद्यालय की प्रवेश परीक्षा में भी वे तीन बार फेल हुए। उसके पश्चात प्रसिद्ध हावर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने हेतु उन्हें 10 बार रिजेक्शन का सामना भी करना पड़ा । बाद में उन्हें हंजाऊ टीचर्स ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला लेकर अपनी ग्रेजिएशन पूरी की। उसके पश्चात उन्होंने लगभग पांच वर्ष तक अंग्रेजी शिक्षक का पदभार सम्भाला,लेकिन वे जिंदगी में कुछ और करना चाहते थे। दुर्भाग्यवश वे जिस भी नौकरी के लिए आवेदन करते उन्हें रिजेकट कर दिया जाता। पुलिस की नौकरी के लिए दिये गए इंटरव्यू में भी उन्हें कोई मौका नहीं नहीं मिला। सबसे ज्यादा निराश तो जैक तब हुए जब चीन में पहली बार खुले KFC में आवेदन के लिए गए 24 उम्मीदवारों में से जैक को छोड़कर बाकी सभी 23 उम्मीदवारों को नौकरी मिल गई।
इन सब चीजों से हताश होकर उन्होंने बिज़नेस में भाग्य आजमाने की सोची और खुद की ट्रॉसलेस्न कम्पनी खोल ली। किसी काम से जब वह एक बार अमेरिका गए तो उन्होंने पहली बार इंटरनेट का प्रयोग देखा। उन्होंने पहली बार जिस शब्द को इंटरनेट पर खोजना चाहा वो था- bear । उन्हें इससे सम्बंधित ढेर सारी जानकारी प्राप्त हुई लेकिन जब उन्होंने चाइनिज बियर के बारे में कुछ ढूंढ़ना चाहा तो कोई जानकारी नहीं मिली जिनका उन्हें बेहद दुख हुआ। वे समझ गए कि इंटरनेट की दुनिया में चीन बहुत पीछे खड़ा है इसी क्षण उन्होंने एक ऐसी वेबसाइट बनाने की सोची जिस पर चीन के सम्बंध में हर तरह की जानकारी उपलब्ध हो सके। इसीलिए उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर Ugly.com की शुरुआत की। जिसका उन्हें बहुत अच्छा रिस्पांस मिला। यहीं से उनको पता चला कि इंटरनेट के माध्यम से वे दुनिया बदल सकते हैं। इस सफलता के पश्चात उन्होंने 1995 में China Yellow Pages company की शुरुआत की जिसका कार्य दूसरी कम्पनियों के लिए websites बनाना था। शुरुआत में इस कम्पनी ने अच्छा business किया लेकिन बाद में पूंजी निवेश की समस्या के कारण उन्हें इसे बंद करना पड़ा। जैक मा ने हमेशा अपने उठाए हर कदम से एक सबक लिया और दुगने उत्साह से नई मंज़िल की ओर अपना कदम बढ़ाया। इस बार जैक मा का इरादा कुछ नया सीखने का था और उन्हें नई कम्पनी के लिए पैसों की भी जरूरत थी इसके लिए उन्होंने China International electronic commerce center द्वारा स्थापित एक आई टी कम्पनी में बतौर president काम किया। लग भग एक साल यह नौकरी करने के पश्चात उन्होंने इस पदभार से इस्तीफा दिया और चीन वापिस लौट आए।
इसके बाद जैक मा ने एक बार फिर अपनी मेहनत से अपना भाग्य बदलने का निर्णय लिया और उन्होंने अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर चीन की पहली business to business marketplace website Alibaba.com(अलीबाबा.कॉम)की शुरूआत की जिसका काम दुनिया भर के suppliers और buyers के साथ सम्बन्ध स्थापित करना था। उस समय उन्हें बहुत से लोगों की आलोचना का सामना भी करना पड़ा। कहते हैं कि जो रास्ते की बाधाओं को नहीं बल्कि सामने खड़ी मंज़िल को देखते हैं उनके लिए हर रुकावट एक चुनौती बन जाती है । जैक मा के साथ भी यही हुआ जब गोल्डमन तथा सॉफ्ट बैंक जैसी बड़ी कम्नपियों ने अलीबाबा में निवेश किया तो इसकी growth में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई । उसके बाद जैक मा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। taobao.com नामकी नीलामी वेबसाइट ने तो इस कदर सफलता प्राप्त की कि चार साल के भीतर ही eBay.com को चीन से बाहर का रास्ता देखना पड़ा।
आज alibaba group के अंतर्गत जैक मा के alipay,aliyun तथा tmall आदि कई sites सफलतापूर्वक काम कर रही हैं।
आज जैक मा को उनकी असफलताओं के लिए नहीं बल्कि सफलता के लिए सम्मान दिया जाता है। अगर जैक मा अपनी पहली ही हार का रोना रोते रहते तो क्या कभी दुनिया के अमीर व्यक्तियों में अपनी गिनती करवाते। तो अगर आप किसी काम में हार रहे हो या सफलता के लिए आपको बहुत संघर्ष करना पड़ रहा हो तो समझ लीजिए कि नीयति आपके लिए कुछ खास लिए बैठी है जिसे आपको अपनी मेहनत और लगन से पाना है।
2.विजय शेखर शर्मा
कामयाबी काबलियत की मोहताज़ नहीं होती – paytm founder श्री विजय शेखर शर्मा जी को देखकर यह बात बिल्कुल सत्य जान पड़ती है। कुछ लोग अपनी कमजोरियों को अपनी हार की वजह मान लेते हैं और जिंदगी भर अपने आपको कोसते रहते हैं लेकिन दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बना लेते हैं और कामयाबी की ऐसी मिसाल बन जाते हैं कि सदियों तक दुनिया उनकी सफलता की कहानी दोहराती रहती है। विजय शेखर शर्मा ने भी सफलता के इसी मूलमंत्र को अपनाया और दुनिया को इस बात से परिचित भी करवाया कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। आज विजय शेखर जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचना कोई आसान काम नहीं था । उन्होंने जिस तरह इस सफर को तय किया अब यही बात हम आपको बताने जा रहे हैं।
8 जुलाई 1973 को जन्मे विजय शेखर शर्मा का जन्म उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ जिले के विजयगढ़ गांव में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ। इनके पिता जी एक स्कूल शिक्षक और माता जी गृहणी थी । इनके पिताजी निहायती ईमानदार और सिद्धांतवादी इंसान रहे हैं, जो ट्यूशन पढ़कर धन कमाने को भी गलत मानते थे और माता-पिता के यही गुण विजय को विरासत में मिले। विजय की प्रारंभिक शिक्षा विजयगढ़ गांव के ही हिंदी मीडियम स्कूल में हुई। विजय पढ़ने में बहुत ही कुशाग्रबुद्धि छात्र थे तथा हर कक्षा में फर्स्ट डिवीज़न में पास होते थे । यही कारण था कि उन्होंने मात्र 14 वर्ष की आयु में ही 12वीं की परीक्षा पास कर ली। विजय इंजीनियर बनना चाहते थे इसलिए इन्होंने दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया। लेकिन हिंदी मीडियम स्कूल से पढ़े विजय ले लिए यह सफर आसान नहीं था । इस रास्ते में जो सबसे बड़ी समस्या उनके सामने आई वो थी -उनका अंग्रेज़ी में कम ज्ञान जिसका परिणाम हताश कर देने वाला था। कॉलेज में सभी विषय अग्रेंजी में ही पढ़ाये जाते थे । लेकिन इस विषय की अधिक जानकारी ना होने ले कारण वे पढ़ाई में पिछड़ने लगे। धीरे -धीरे अब वे क्लास भी बंक करने लगे । एक बार तो उन्होंने गांव वापिस जाने का भी मन बना लिया मगर किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। एक दिन बैठे – बैठे उन्होंने अंग्रेज़ी पर काबू पाने का मन बनाया। । अब उन्होंने अपना अधिकतर समय लाइब्रेरी में बिताना शुरू कर दिया । वहां वह घण्टों तक बैठकर अंग्रेज़ी की किताबें पढ़ते रहते ।
अंग्रेजी सीखने का उन्होंने एक और नया तरीका अपनाया वे एक ही किताब का हिंदी और अग्रेंजी अनुवाद खरीदकर लाते और उन्हें बारी-बारी पढ़ते। अब धीरे -धीरे उन्होंने अपनी इस कमज़ोरी पर काबू पा लिया। उसके बाद जब वह इंजीनियरिंग classes नही करते थे तो उन्होंने yahoo के founder Sabeer भाटिया को अपनी प्रेरणा बनाया तथा उन्हीं की तरह इंटरनेट के क्षेत्र में कुछ बड़ा करने का मन बनाया । yahoo क्योंकि stanford collage campus में बनी थी इसलिए उनका मन भी वहां जाकर पढ़ने के लिए किया। मगर आर्थिक तंगी और अंग्रेज़ी पर अच्छी पकड़ न होने के कारण उन्हें यह विचार त्यागना पड़ा । लेकिन इसके बाद विजय ने stanford के genious को follow करना तथा खुद ही कोडिंग सीखना शुरू कर दिया। जब वह इसमें perfect हो गए तो उन्होंने खुद का content management system तैयार किया जिसे भारत बड़े-बड़े अखबारों व न्यूज़ मैगज़ीन्स ने प्रयोग करना शुरू कर दिया। उसके कुछ समय के बाद इन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर XS नामक कम्पनी की शुरुआत की जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया। इसके बाद इन्होंने XS को USA की Lotus inter work को पांच लाख डॉलर में बेच दिया और इसी कम्पनी में नौकरी कर ली । ज्यादा दिनों तक विजय किसी के अधीनस्थ होकर कार्य नहीं कर सके क्योंकि वे बिजनेस की वेल्यू समझ चुके थे। उन्होंने नौकरी छोड़कर अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर 2001 में one97 नामक कम्पनी की स्थापना की और अपनी सारी जमा पूंजी इसमें लगा दी ।
dot com bust के कारण अधिक समय तक टिक नहीं पाई और उनके दोस्तों ने भी उनका साथ बीच में ही छोड़ दिया। अब विजय नितांत अकेले थे । एक तो आर्थिक तंगी और दूसरा भावनात्मक आघात किसी भी व्यक्ति तो तोड़ सकते हैं लेकिन विजय तो बिल्कुल नाम के अनुरूप थे पराजित होना उन्हें नहीं आता था। विजय ने उन परिस्थितियों को भी स्वीकार किया और दिल्ली में कश्मीरी गेट के पास एक सस्ते से होटल में कमरा लेकर रहने लगे। उन्हें इन हालातों से उभरना था । पैसों को बचाने के लिए कभी – कभी वे मीलों का सफर भी पैदल ही तय किया करते थे। लेकिन कहते हैं जहां हौंसले बुलंद हों वहां न तो सागर की गहराई डरा सकती है और ना ही पर्वत की ऊंचाई। धीरे – धीरे उनकी कम्पनी जो CDMA और GSM mobile ऑपरेटर्स को innovative services provide किया करती थी ,फिर से रफ्तार पकड़ने लगी। उस समय तक बाज़ार में स्मार्ट फोन आ चुके थे औऱ विजय समय की नज़ाकत को समझने की बेहतर समझ रखते हैं । बस फिर क्या था उनके दिमाग में स्मार्टफोन फोन से cashless transaction आया और उन्होंने one97 के बोर्ड के समक्ष payment system में प्रवेश करने का विचार रखा। चूंकि अब कम्पनी अच्छा खासा मुनाफा कमा रही थी और market में अपनी साख भी बना चुकी थी तो कोई भी ऐसे समय में risk उठाने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में अगर विजय चाहते तो अपनी एक अलग कम्पनी भी शुरू कर सकते थे मगर उनका सपना तो 100 साल पुरानी कम्पनी को बनाना था। वे स्वयं मानते हैं कि men और boys में केवल इतना ही अंतर है कि boys एक झटके में कम्पनी छोड़ देते हैं लेकिन में men उसी कम्पनी को चलाते हैं औऱ विरासत का निर्माण करते हैं। विजय ने भी यही रास्ता चुना जिसके लिए उन्होंने
पर्सनल इक्विटी का 1%, करीब $2 Mn अपने नए idea के लिए सामने रखा और 2001 में Paytm.com की नींव रखी। आरम्भ में यह कम्पनी DTH recharge और prepaid mobile recharge के रूप में अपनी सेवाएँ दे रही थी। फिर Paytm ने धीरे-धीरे अपनी services बढ़ानी शुरू की। पहले बिजली बिल, गैस का बिल payment की सुविधा दी और फिर Paytm ने अन्य e-commerce कंपनियों की तरह सामान बेचना शुरू कर दिया। भारत में हुई नोटबन्दी ने तो इसके लिए सफलता के सारे रास्ते खोल दिये और नोटबन्दी ने PayTM के लिए lottery का काम किया और देखते-देखते PayTM करोड़ों लोगों की ज़रुरत बना गया। आज चाहे कोई साधारण मज़दूर हो या बड़ा उद्योगपति सभी paytm का सफलतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं। आज paytm भारत की सबसे बड़ी online payment site बन चुकी है तथा अबतक 15000 करोड़ से भी अधिक का कारोबार कर चुकी है। विजय की सफलता की कहानी यहीं खत्म नहीं होती
Economic Times ने विजय शेखर शर्मा को “India’s Hottest Business Leader under 40” के रूप में चुना है। विजय शेखर शर्मा हर उस व्यक्ति का आदर्श हैं जो सपने देखता है और उन सपनों को साकार करने के लिए पहला कदम बढ़ाता है। याद रखिये सफलता की ओर आपके द्वारा उठाया गया पहला कदम ही अगले कदम की दिशा निर्धारित करता है। विजय शेखर शर्मा की यही कहानी हमें कठिनाइयों से लड़ने के लिए प्रेरित करती रहेगी ।
3. Soichiro Honda सफलता का तीसरा नाम
तीसरी प्रेरणादायक कहानी जो हम आपको बताने जा रहे हैं वो है होंडा कंपनी के संस्थापक Soichiro Honda। कोशिश ,काबलियत और कामयाबी ये तीनों ही शब्द एक दूसरे के पूरक हैं । इस बात को साइचिरो ने भली- भांति साबित किया है। आज होंडा विश्व में जो पहचान बनाए हुए है उसके पीछे इस कम्पनी के संस्थापक साइचिरो होंडा की मेहनत, लगन और आत्मविश्वास है। साइचिरो का जन्म 17 नवम्बर 1906 को जापान के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता एक लुहार थे । वे पुरानी साइकल खरीदकर उनकी मरम्मत करते थे तथा उन्हें अच्छे दामों में बेच देते थे। साइचिरो भी अपने पिता के काम में उनका हाथ बंटाते थे। उनकी पढ़ाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी, यही कारण था कि उन्होंने 16 साल की उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी। इसके पश्चात एक दिन इन्होंने न्युज पेपर में टोकियो की एक कार कम्पनी के लिए नौकरी का विज्ञापन देखा। कुछ नया कर दिखाने का जज़्बा उन्हें टोकियो ले गया। वहाँ कम्पनी के मालिक ने इनकी छोटी उम्र को देखते हुए साफ-सफाई के काम पर लगा दिया। मगर साइचिरो तो मकैनिक बनना चाहते थे । उन्होंने शुकाई कम्पनी के मालिक से विनती कर मकैनिक का काम सीखने की अपील की । कम्पनी के मालिक ने उनके अच्छे बर्ताव को देखते हुए अपनी कम्पनी की दूसरी ब्रांच में भेज दिया । उस कम्पनी में रात को बेसिक कार बनाई जाती थी। साइचिरो जल्द ही सारा काम अच्छी तरह सीख गए। 23 नवम्बर 1924 को शुकाई कार ने जापान में होने वाली पांचवीं कार रेस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। इस चैंपियनशिप में अन्य कारों को पछाड़ते हुए शुकाई कार ने प्रथम स्थान प्राप्त किया । । होंडा जीतने वाली कार को बनाने वाली टीम में शामिल थे।
उनके काम से खुश होकर कम्पनी के मालिक ने उन्हें अपनी दूसरी ब्रांच की पूरी ज़िम्मेदारी सौंप दी। उसके बाद 1928 में साइचिरो ने उस कम्पनी को छोड़ दिया और वापिस घर लौट आए। घर आकर इन्होंने वापिस मकैनिक का काम करना शुरू कर दिया। वे कुछ ऐसा करना चाहते थे कि बड़ी- बड़ी कम्पनियों से उनकी पहचान बने। यही सोचकर उन्होंने बड़ी- बड़ी कार कम्पनियों के लिए पिस्टन रिंगस बनाने शुरू कर दिए। इस काम को शुरू करने में उनकी सारी जमा पूंजी खर्च हो गई। साइचिरो ने Toyata कम्पनी के मालिक से मिलकर उन्हें पिस्टन rings खरीदने का प्रस्ताव दिया और उन्हें यह ऑर्डर मिल भी गया लेकिन उनके भाग्य में अभी और संघर्ष करना बाकी था । हुआ यह कि साइचिरो एक दुर्घटना में घायल हो गए और उन्हें तीन महीने अस्पताल में रहना पड़ा। जब वो ठीक होकर वापिस लौटे तो उन्हें पता चला कि उनके पिस्टन रिंग्स में गुणवत्ता के तय मानकों के आधार पर कमी पाई गई जिस कारण toyata कम्पनी ने उसका आर्डर कैंसिल कर दिया। यह बात किसी वज्राघात से कम नहीं थी। उनकी लगाई गई सारी जमापूंजी भी डूब चुकी थी। जो हालात से डर जाए साइचिरो ऐसे व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने पिस्टन रिंग की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कमर कस ली लेकिन मुसीबतें यही खत्म नहीं हुई। 1944 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी B29 हमले में उनकी फैक्ट्री पूरी तरह ध्वस्त हो गई। इस घटना ने उन्हें पूरी तरह हिलाकर रख दिया। उन्होंने एक नई शुरुआत करने के लिए फैक्ट्री के अवशेषों को बेच दिया और उन्हीं पैसों से 1941 में Honda Technical Research Institute की स्थापना की । इस युद्ध के पश्चात जापान को भी भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। अपने गंतव्य तक जाने के लिए लोग पैदल या साइकिल पर जाने को मजबूर हो गए। इसी दौरान साइचिरो होंडा को विचार आया कि क्यों ना साइकिल के साथ एक छोटा इंजन जोड़ा जाए। उन्होंने इसका एक मॉडल तैयार किया लोगों को उनका कॉनसेप्ट बहुत पसंद आया । यह सफलता की ओर उनका पहला कदम था ।
अब उन्होंने अपनी कम्पनी का नाम बदलकर Honda Motor Company रख दिया। उसी साल उन्होनें 2 stock ईंजन वाला मोटरबाइक निकाली। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । जब जापान आर्थिक संकट से उभरा तो साइचिरो ने 4 पहिए गाड़ी में भी किस्मत आजमाने की सोची । इसके बाद तो उनके लिए हर तरफ से सफलता के द्वार खुलने लगे। पूरी दुनिया में अपनी साख बन चुके साइचिरो होंडा 1991 में अपनी प्रेरणादायक कहानी छोड़कर सदा के लिए गहरी नींद सो गए। साइचिरो की कामयाबी का सबसे बड़ा कारण उनकी अपनी लगन और मेहनत थी । वे मज़दूरों के साथ मिलकर मजदूरी किया करते थे । वे कभी छोटे या बड़े कर्मचारी में कोई भेदभाव नहीं करते थे । यही कारण था कि उनके साथ काम करने वाला हर व्यक्ति उनकी कामयाबी को अपनी कामयाबी मानता था ।
इन तीन सफल व्यक्तियों की कहानियों से ही यह एहसास होता है
जो झुककर फिर उठने में अपनी शान मानते हैं,वही किस्मत को बदलना जानते हैं।
